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+ | ऐ तो सारी ही श्रिष्टि रा सिरजनहार | ||
+ | खाली हाथां नहीं जाऊं ....... | ||
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22:02, 17 फ़रवरी 2016 का अवतरण
दायण आई /अज्ञात
दायण आई है कौशल्या थारे द्वार
खाली हाथा नहीं जायुं ....
मैं तो दायण सूरज कुल री पिढ़यासु रही आय
पोतड़ीया धोवन ने थारे घर पर आई चलाय
आशा मोटी लेकर आई सरजू पार
खाली हाथां नहीं जाऊं .......
आंगणिये में रमता देख्या चारु राजकुमार
नहीं गर्भ सु जन्म्या ऐ तो प्रगट्या जग करतार
ऐ तो सारी ही श्रिष्टि रा सिरजनहार
खाली हाथां नहीं जाऊं .......
म्हे तो थारी दाईमाँ थे म्हारा जजमान
पहलो नेग चुकाओ देवो भक्ति रो वरदान
थारे चरणा शीश नवाऊँ बारमबार
खाली हाथां नहीं जाऊं .......
अँखियाँ शीतल करूँ लाल ने टुक टुक रहूँ निहार
नवधा भक्ति रो पहनूंगी गल में नौलख हार
म्हाने जुग जुग माहीं दीजियो नाहीं बिसार
खाली हाथां नहीं जाऊं .......
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