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मेघदूत / कालिदास
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| मेघदूत | |
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| रचनाकार: | कालिदास | 
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| मूल भाषा: | संस्कृत | 
| विषय: | -- | 
| शैली: | -- | 
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 इस पन्ने पर दी गयी रचनाओं को विश्व भर के योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गयी प्रकाशक संबंधी जानकारी प्रिंटेड पुस्तक खरीदने में आपकी सहायता के लिये दी गयी है।  | |
पूर्वमेघ
- कोई यक्ष था / कालिदास
 - स्त्री के विछोह में / कालिदास
 - यक्षपति का वह अनुचर / कालिदास
 - जब सावन पास आ गया / कालिदास
 - धुएँ, पानी, धूप और हवा का / कालिदास
 - पुष्कर और आवर्तक / कालिदास
 - जो सन्तप्त हैं / कालिदास
 - जब तुम आकाश में उमड़ते हुए उठोगे / कालिदास
 - अनुकूल वायु तुम्हें धीमे-धीमे चला रही / कालिदास
 - विरह के दिन गिनने में संलग्न / कालिदास
 - जिसके प्रभाव से पृथ्वी / कालिदास
 - अब अपने प्यारे सखा / कालिदास
 - हे मेघ, पहले तो अपनी यात्रा के लिए / कालिदास
 - क्या वायु कहीं पर्वत की चोटी ही / कालिदास
 - चम-चम करते रत्नों की झिलमिल ज्योति-सा / कालिदास
 - खेती का फल तुम्हारे अधीन / कालिदास
 - वन में लगी हुई अग्नि को / कालिदास
 - पके फलों से दिपते हुए जंगली आमवृक्ष / कालिदास
 - उस पर्वत पर जहाँ कुंजों में / कालिदास
 - जब तुम वृष्टि द्वारा अपना जल / कालिदास
 - हे मेघ, जल की बूँदें बरसाते हुए / कालिदास
 - हे मित्र, मेरे प्रिय / कालिदास
 - हे मेघ, तुम निकट आए / कालिदास
 - उस देश की दिगन्तों में विख्यात / कालिदास
 - विश्राम के लिए वहाँ निचले पर्वत पर / कालिदास
 - विश्राम कर लेने पर वन-नदियों के किनारों / कालिदास
 - उत्तर दिशा की ओर जानेवाले / कालिदास
 - लहरों के थपेड़ों से किलकारी भरते हुए / कालिदास
 - जिसकी पतली जलधारा वेणी बनी हुई / कालिदास
 - गाँवों के बड़े-बूढ़े जहाँ / कालिदास
 - जहाँ प्रात:काल शिप्रा का पवन / कालिदास
 - उज्जयिनी में स्त्रियों के केश सुवासित / कालिदास
 - अपने स्वामी के नीले कंठ से / कालिदास
 - हे जलधर, यदि महाकाल के मन्दिर में / कालिदास
 - वहाँ प्रदोष-नृत्य के समय पैरों की ठुमकन / कालिदास
 - आरती पश्चात् शिव के तांडव-नृत्य में / कालिदास
 - वहाँ उज्जयिनी में रात के समय प्रियतम / कालिदास
 - देर तक बिलसने से जब तुम्हारी / कालिदास
 - रात्रि में बिछोह सहनेवाली / कालिदास
 - गम्भीरा के चित्तरूपी निर्मल जल में / कालिदास
 - हे मेघ, गम्भीरा के तट से हटा हुआ / कालिदास
 - हे मेघ, तुम्हारी झड़ी पड़ने से / कालिदास
 - हे मेघ, अपने शरीर को पुष्प-वर्षी बना / कालिदास
 - उस पर्वत की कन्दराओं में गूँजकर / कालिदास
 - सरकंडों के वन में जन्म लेनेवाले / कालिदास
 - हे मेघ, विष्णु के समान श्यामवर्ण तुम / कालिदास
 - उस नदी को पार करके अपने शरीर को / कालिदास
 - उसके बाद ब्रह्मावर्त जनपद के ऊपर / कालिदास
 - कौरवों और पांडवों के प्रति समान स्नेह / कालिदास
 - वहाँ से आगे कनखल में शैलराज / कालिदास
 - आकाश में दिशाओं के हाथी की भाँति / कालिदास
 - वहाँ आकर बैठनेवाले कस्तूरी मृग / कालिदास
 - जंगली हवा चलने पर देवदारु के तन / कालिदास
 - यदि वहाँ हिमालय में कुपित होकर वेग से / कालिदास
 - वहाँ चट्टान पर शिवजी के पैरों की छाप / कालिदास
 - वहाँ पर हवाओं के भरने से / कालिदास
 - हिमालय के बाहरी अंचल में / कालिदास
 - वहाँ से आगे बढ़कर कैलास पर्वत के / कालिदास
 - हे मेघ, चिकने घुटे हुए अंजन की शोभा / कालिदास
 - जिस पर लिपटा हुआ सर्परूपी कंगन / कालिदास
 - वहाँ कैलास पर सुर-युवतियाँ / कालिदास
 - हे मेघ, अपने मित्र कैलास पर / कालिदास
 - हे कामचारी मेघ / कालिदास
 
उत्तरमेघ
- अलका के महल अपने इन-इन गुणों से / कालिदास
 - वहाँ अलका की वधुएँ षड्ऋतुओं के फूलों से / कालिदास
 - वहाँ पत्थर के बने हुए महलों के उन / कालिदास
 - देवता चाहते हैं, ऐसी रूपवती कन्याएँ / कालिदास
 - वहाँ अलका में कामी प्रियतम अपने / कालिदास
 - उस अलका के सतखंडे महलों की ऊँची / कालिदास
 - वहाँ अलका में आधी रात के समय / कालिदास
 - वहाँ अलका में कामी जन अपने महलों के / कालिदास
 - वहाँ अलका में प्रात: सूर्योदय के समय / कालिदास
 - वहाँ अलका में कुबेर के मित्र शिवजी को / कालिदास
 - वहाँ अलका में पहनने के लिए रंगीन वस्त्र / कालिदास
 - उस अलका में कुबेर के भवन से उत्तर / कालिदास
 - मेरे उस घर में एक बावड़ी है जिसमें / कालिदास
 - उस बावड़ी के किनारे एक क्रीड़ा-पर्वत / कालिदास
 - उस क्रीड़ा-शैल में कुबरक की बाढ़ से घिरा / कालिदास
 - उन दो वृक्षों के बीच में सोने की बनी / कालिदास
 - हे चतुर, ऊपर बताए इन लक्षणों को / कालिदास
 - हे मेघ, सपाटे के साथ तुम नीचे उतरो / कालिदास
 - छरहरी देह की उठते हुए यौवनवाली / कालिदास
 - मेरे दूर चले आने के कारण अपने साथी से / कालिदास
 - लगातार रोने से नेत्र सूज गए हैं उसके / कालिदास
 - हे मेघ, वह मेरी पत्नी या तो देवताओं की / कालिदास
 - हे सौम्य, फिर मलिन वस्त्र पहने हुए गोद / कालिदास
 - वियोगिनी की काम दशा, संकल्प / कालिदास
 - चित्र-लेखन या वीणा बजाने आदि में व्यस्त / कालिदास
 - मानसिक सन्ताप के कारण तन-क्षीण बनी / कालिदास
 - जाली में से भीतर आती हुई चन्द्रमा की / कालिदास
 - रूखे स्नान के कारण खुरखुरी एक घुँघराली / कालिदास
 - विरह के पहले दिन जो वेणी चुटीले के बिना / कालिदास
 - वह अबला आभूषण त्यागे हुए अपने / कालिदास
 - मैं जानता हूँ कि तुम्हारी उस सखी के मन में / कालिदास
 - मुँह पर लटक आनेवाले बाल जिसकी / कालिदास
 - और भी, रस-भरे केले के खम्भे के रंग-सा / कालिदास
 - हे मेघ, यदि उस समय वह नींद का सुख ले / कालिदास
 - हे मेघ, फुहार, उड़ाती हुई ठंडी वायु से उसे / कालिदास
 - हे सुहागिनी, मैं तुम्हारे स्वामी का सखा / कालिदास
 - जब तुम इतना कह चुकोगे, तब वह / कालिदास
 - चिरजीवी मित्र, मेरे कहने से और अपनी / कालिदास
 - दूर गया हुआ तुम्हारा वह सहचर / कालिदास
 - सखियों के सामने भी जो बात मुख से / कालिदास
 - हे प्रिया, प्रियंगु लता में तुम्हारे शरीर / कालिदास
 - हे प्रिया, प्रेम में रूठी हुई तुम गेरू के रंग से / कालिदास
 - हे प्रिया, स्वप्न दर्शन के बीच जब तुम मुझे / कालिदास
 - हे गुणवती प्रिये, देवदारु वृक्षों के / कालिदास
 - हे चंचल कटाक्षोंवाली प्रिया / कालिदास
 - हे प्रिया, और भी सुन तू भाँति-भाँति की / कालिदास
 - जब विष्णु शेष की शय्या त्याग उठेंगे / कालिदास
 - तुम्हारे पति ने इतना और कहा है मुझसे / कालिदास
 - इस पहचान से मुझे सकुशल समझ लेना / कालिदास
 - पहली बार विरह के तीव्र शोक की दु:खिनी / कालिदास
 - हे प्रिय मित्र, क्या तुमने निज बन्धु का यह / कालिदास
 - हे मेघ, मित्रता के कारण, अथवा मैं विरही / कालिदास
 
	
	