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क़र्जे़ तहज़ीब एक दुनिया है / विनय कुमार
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क़र्जे़ तहज़ीब एक दुनिया है
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रचनाकार | विनय कुमार |
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प्रकाशक | राधाकृष्ण प्रकाशन, दरियागंज, नई दिल्ली-110002 |
वर्ष | 2004 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- सूखे पत्तों सा यह शहर क्यों है / विनय कुमार
- जब भी उठो लिहाफ़ हटाकर सुबह-सुबह / विनय कुमार
- जी हाँ मुझे पता है शीशा टूटेगा / विनय कुमार
- बाहर आने को मुश्किल से कोई दुख राज़ी होता है / विनय कुमार
- राजकोष की जूठन छोटी बड़ी किताबों में / विनय कुमार
- धँसी है आँख मिट्टी में, निगाहें आसमानों में / विनय कुमार
- आप बदले तो कहाँ हम भी पुराने से रहे / विनय कुमार
- एक मुजरिम को मसीहा नहीं बता सकते / विनय कुमार
- फाइलों मे छिपा दिया पानी / विनय कुमार
- मन बँधते ही मरा काठ तन धीरे-धीरे नष्ट हुआ / विनय कुमार
- गुफ़्तगू ख़त्म हुई, तख़्त बचा, ताज रहा / विनय कुमार
- तेरा कहा तुझी पर लागू नहीं होता है / विनय कुमार
- रोज़ पीता है उसे इतना नशा आता है / विनय कुमार
- जश्न में हरगिज़ न जाऊँगा मुझे करना मुआफ़ / विनय कुमार
- आँकड़ों के ज़माने आए हैं / विनय कुमार
- सच बताने को तरसते हुए डर लगता है / विनय कुमार
- बातें कहीं हज़ार मगर सच बोल गया / विनय कुमार
- कहें वे लाख हमारे दिलों में रहते हैं / विनय कुमार
- यह समय है आँख के शोले बुझाने का / विनय कुमार
- क़तरा-क़तरा बिखर गए बादल / विनय कुमार
- गुज़र गया फूलों का मौसम चर्चा फ़िऱ भी फूल की / विनय कुमार
- मोड़ तीखे हो गए डरने लगे हैं रास्ते / विनय कुमार
- तोडियें मत और इन टूटी ज़मीनों को / विनय कुमार
- बात की बिगड़ी हुई बस रात में है / विनय कुमार
- देख कर बगुला भगत को मछलियाँ खाते हुए / विनय कुमार
- आपके ईमान के जैसा हुआ है आईना / विनय कुमार
- बंदों को हमराज़, खुदाओं को नाराज़ बनाता हूँ / विनय कुमार
- एक क़तरा भी जहाँ बेमौत मारा जाएगा / विनय कुमार
- स्वप्न था यह आपका ही सूर्य धरती से उगे / विनय कुमार
- ज़िद में बसने की भटकना होगा अब बसेरा कहीं नहीं दिखता / विनय कुमार
- शबों के हाथ में खंज़र थमा गया कोई / विनय कुमार
- सब्ज़ बागों के फ़रेबात के सिवा क्या है / विनय कुमार
- सख्त सौदागर समय है यूं हमें रहने न दे / विनय कुमार
- ज़हरवाले न हों कोई जगह ऐसी नहीं होती / विनय कुमार
- पूरी साड़ी फटी हुई है, नयी किनारी दिल्ली में / विनय कुमार
- एक भी मिसरा सुबह की धूप से कमतर नहीं / विनय कुमार
- रास आई है फिज़ा जबसे इबादतग़ाह की / विनय कुमार
- इक बियाबान में सपनों के सफ़र होता है / विनय कुमार
- जब कभी प्यार ज़माने से खार खाता है / विनय कुमार
- आ गया सूरज बहुत नज़दीक अब कुछ सोचिए / विनय कुमार
- मौत से था डर जिन्हें सब घर गए / विनय कुमार
- अक़ल का कब्ज़ा हटाया जा रहा है / विनय कुमार
- हम तो आशिक है बारिश के कब से शीश मुड़ाकर बैठे / विनय कुमार
- दरिया बहाके बोल कि चिड़िया उड़ाके बोल / विनय कुमार
- सच कहूं तो है यही उम्मीद की असली वजह / विनय कुमार
- शाम के पहले बहुत पहले हुआ सूरज हलाल / विनय कुमार
- माना, मेरा मुह सी दोगे, उसकी जीभ कतर दोगे / विनय कुमार
- परिंदों ने समेटे पर ज़रा सी धूप बाक़ी है / विनय कुमार
- हाथ पे हाथ बुरी बात हटा ले कोई / विनय कुमार
- आँकड़ों से पीटना सरकार को महंगा पड़ा / विनय कुमार
- हज़ार ख़्वाब हमारी शबों में आते हैं / विनय कुमार
- हम अपनी बाग़ी चीखों के चलते जो मशहूर हुए / विनय कुमार
- नक्शा जो मन के कागज़ पर बनता है / विनय कुमार
- स्याहियों में घुली फिज़ा मानो / विनय कुमार
- दे गई है पाक पुड़ियों में ज़हर तिरछी हँसी / विनय कुमार
- तकाज़ा वक़्त का है ख़्वाब चीज़ों में बदल जाएँ / विनय कुमार
- मिट्टी हुई है लावा, दहका हुआ फ़लक है / विनय कुमार
- तेरी आँख नम तू बुझा हुआ / विनय कुमार
- फ़ल्सफ़े में फ़ँस गए हम सब्र में घाटा हुआ / विनय कुमार
- कह रहे औज़ार साये से कि घबराये नहीं / विनय कुमार
- फूल जैसा खिला खिला कहिए / विनय कुमार
- मेहरबानी बाँटिए, नामेहरबानी बाँटिए / विनय कुमार
- फ़कीरों के लिए खोटी चवन्नी फेंकते रहिए / विनय कुमार
- दर्द खोटा क्यों लगा, सोना खरा कैसे लगा / विनय कुमार
- संतों ने साहिबान ने छोटा किया मुझे / विनय कुमार
- हमको परहेज़ है साहब कहाँ बदलने से / विनय कुमार
- कुछ लोग इस तरह से ख़बरें खुरच रहे हैं / विनय कुमार
- आग ग़ज़लों को पिलाकर सर्दज़ाँ हो जाइए / विनय कुमार
- चाहिए इसको विभीषण इसे लंका चाहिए / विनय कुमार
- उर्दू में ग़ज़ल कहिए हिन्दी में ग़ज़ल कहिए / विनय कुमार
- आपकी खुशुबुएँ उड़ा लाए / विनय कुमार
- झील लिखिए कि समंदर लिखिए / विनय कुमार
- मुल्क को चौहियों से वह दिलाएगा निज़ात / विनय कुमार
- चांद से नाराज़ हूँ मैं, चांद है मुझ से ख़फ़ा / विनय कुमार
- लगी है आग हवाओं से बात करता है / विनय कुमार
- हर तरफ़ स्याह समंदर दिखाई देता है / विनय कुमार
- जहाँ बर्फ की निर्मम परती रहती है / विनय कुमार
- एक सच के मायने सौ कर लिए मुमकिन जनाब / विनय कुमार
- सब समझते हैं क्या ज़रूरी था / विनय कुमार
- शेख पीते तो नहीं हैं शराबखाने में / विनय कुमार
- जिसने प्रतिबंधों का दर्द सहा होगा / विनय कुमार
- मैं नदी का शोर हूँ मैं हूँ परिंदों का बयान / विनय कुमार
- आपकी शह पर कुएँ का जल समूचा पी गयी / विनय कुमार
- आततायी जल हटाना चाहते हैं बुलबुले / विनय कुमार
- कोई मस्त मलंग लिफ़ाफ़ा / विनय कुमार
- जो भी अपनी गांठे ज़्यादा बाँधेगा कम खोलेगा / विनय कुमार
- आप तालाब में ज़हर रखिए / विनय कुमार
- एक पत्थर को निशाना साधकर छोड़ा गया / विनय कुमार
- चांदी खो कर चांद सुनहरा सूरज से जाकर पूछो / विनय कुमार
- कर रहे हैं सब हरे पत्ते इसे महसूस / विनय कुमार
- किन रिवाज़ों के शहर में आ गए बसने लगे / विनय कुमार
- पर समेटे बदन-बदन चिड़िया / विनय कुमार
- बरसात है, हर शख़्स का घर डूब रहा है / विनय कुमार
- बारिशों की रहमतें जर्जर घरों से पूछिए / विनय कुमार
- सिर्फ अपनी आँख में कब तक बड़ा कोई रहे / विनय कुमार
- दंश की आदत छुडा दें शब्द तो कुछ बात हो / विनय कुमार
- गढ़ गया होगा उसे भी क्या सियासी चाक है / विनय कुमार
- कुछ तो उठा ज़मीं से, कुछ आसमां से उतरा / विनय कुमार
- कितने सैनिक, कितने पहरे / विनय कुमार
- जंगल से भाग आए थे हम आग के डर से / विनय कुमार
- सोचा था सोचों को हम लें सींच बहस में / विनय कुमार
- गर्म है सच की चिता / विनय कुमार
- बोलतीं आँखें यक़ीनन देवता सोया न था / विनय कुमार
- खिज़ां के खुश्क पत्तों से जहाँ बिखरे हुए चेहरे / विनय कुमार
- रात अपनी स्याहियों से धो गयी है / विनय कुमार
- क्या इसमें अब सिज़दा करना / विनय कुमार
- पानियों में एक तिनका, आसमानों में खजूर / विनय कुमार
- जंग की तैयारियाँ होने लगीं / विनय कुमार
- हार छप्पर की नहीं है / विनय कुमार
- कानों में लफ़्ज़ों का कचरा उफ़ मैने कुछ सुना नहीं / विनय कुमार