कविता कोश [[जब सूरज जग जाता है /रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] {{KKGlobal}} {{KKRachna /रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ }} आँखें मलकर धीरे-धीरे <br> सूरज जब जग जाता है ।<br> सिर पर रखकर पाँव अँधेरा <br> चुपके से भग जाता है ।<br> हौले से मुस्कान बिखेरी <br> पात सुनहरे हो जाते ।<br> डाली-डाली फुदक-फुदक कर<br> सारे पंछी हैं गाते ।<br> थाल भरे मोती ले करके<br> धरती स्वागत करती है ।<br> नटखट किरणें वन-उपवन में संकलित बच्चों के लिये रचित काव्य <br> खूब चौंकड़ी भरती हैं ।<br> कल-कल बहती हुई नदी में से अधिकतर की कड़ियाँ नीचे दी गयी हैं।<br> सूरज खूब नहाता है<br> कभी तैरता है लहरों पर<br> डुबकी कभी लगाता है ।<br>>>>>>>>>>>>>>