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अ
अनुकूल वायु तुम्हें धीमे-धीमे चला रही / कालिदास
अपने स्वामी के नीले कंठ से / कालिदास
अब अपने प्यारे सखा / कालिदास
अलका के महल अपने इन-इन गुणों से / कालिदास
आ
आकाश में दिशाओं के हाथी की भाँति / कालिदास
आरती पश्चात् शिव के तांडव-नृत्य में / कालिदास
इ
इस पहचान से मुझे सकुशल समझ लेना / कालिदास
उ
उज्जयिनी में स्त्रियों के केश सुवासित / कालिदास
उठो लाल अब आँखें खोलो / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे
उत्तर दिशा की ओर जानेवाले / कालिदास
उन दो वृक्षों के बीच में सोने की बनी / कालिदास
उस अलका के सतखंडे महलों की ऊँची / कालिदास
उस अलका में कुबेर के भवन से उत्तर / कालिदास
उस क्रीड़ा-शैल में कुबरक की बाढ़ से घिरा / कालिदास
उस देश की दिगन्तों में विख्यात / कालिदास
उस नदी को पार करके अपने शरीर को / कालिदास
उस पर्वत की कन्दराओं में गूँजकर / कालिदास
उस पर्वत पर जहाँ कुंजों में / कालिदास
उस बावड़ी के किनारे एक क्रीड़ा-पर्वत / कालिदास
उसके बाद ब्रह्मावर्त जनपद के ऊपर / कालिदास
औ
और भी, रस-भरे केले के खम्भे के रंग-सा / कालिदास
क
कास कुसुमों से मही औ"... / कालिदास
किरण दग्ध, विशुष्क अपने कण्ठ से... / कालिदास
कुलस्त्री / राजशेखर
कोई यक्ष था / कालिदास
कौरवों और पांडवों के प्रति समान स्नेह / कालिदास
क्लांत तन-मन रे कलापी... / कालिदास
क्वणित नूपुर गूँज, लाक्षा रागरंजित... / कालिदास
क्या वायु कहीं पर्वत की चोटी ही / कालिदास
ख
खेती का फल तुम्हारे अधीन / कालिदास
ग
गम्भीरा के चित्तरूपी निर्मल जल में / कालिदास
गाँवों के बड़े-बूढ़े जहाँ / कालिदास
घ
घर्षिता है वीचिमाला... / कालिदास
च
चटुल शफरी सुभग काञ्ची सी... / कालिदास
चतुर्थ सर्ग / भाग 1 / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी
चतुर्थ सर्ग / भाग 2 / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी
चतुर्थ सर्ग / भाग 3 / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी
चतुर्थ सर्ग / भाग 4 / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी
चतुर्थ सर्ग / भाग 5 / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी
चम-चम करते रत्नों की झिलमिल ज्योति-सा / कालिदास
चित्र-लेखन या वीणा बजाने आदि में व्यस्त / कालिदास
चिर सुरत कर केलि श्रमश्लथ... / कालिदास
चिरजीवी मित्र, मेरे कहने से और अपनी / कालिदास
छ
छरहरी देह की उठते हुए यौवनवाली / कालिदास
ज
जंगली हवा चलने पर देवदारु के तन / कालिदास
जब तुम आकाश में उमड़ते हुए उठोगे / कालिदास
जब तुम इतना कह चुकोगे, तब वह / कालिदास
जब तुम वृष्टि द्वारा अपना जल / कालिदास
जब विष्णु शेष की शय्या त्याग उठेंगे / कालिदास
जब सावन पास आ गया / कालिदास
जहाँ प्रात:काल शिप्रा का पवन / कालिदास
जाली में से भीतर आती हुई चन्द्रमा की / कालिदास
जिस पर लिपटा हुआ सर्परूपी कंगन / कालिदास
जिसकी पतली जलधारा वेणी बनी हुई / कालिदास
जिसके प्रभाव से पृथ्वी / कालिदास
जो सन्तप्त हैं / कालिदास
त
तीव्र आतप तप्त व्याकुल... / कालिदास
तीव्र जलती है तृषा अब... / कालिदास
तुम्हारे पति ने इतना और कहा है मुझसे / कालिदास
तृतीय सर्ग / भाग 1 / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी
तृतीय सर्ग / भाग 2 / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी
तृतीय सर्ग / भाग 3 / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी
तृतीय सर्ग / भाग 4 / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी
तृतीय सर्ग / भाग 5 / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी
द
दग्ध भोगी तृषित बैठे... / कालिदास
दन्त क्षत से अधर व्याकुल.../ कालिदास
दूर गया हुआ तुम्हारा वह सहचर / कालिदास
द आगे.
देर तक बिलसने से जब तुम्हारी / कालिदास
देवता चाहते हैं, ऐसी रूपवती कन्याएँ / कालिदास
द्रुम कुसुमय, सलिल सरसिजमय / कालिदास
द्वितीय सर्ग / भाग 1 / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी
द्वितीय सर्ग / भाग 2 / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी
द्वितीय सर्ग / भाग 3 / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी
द्वितीय सर्ग / भाग 4 / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी
द्वितीय सर्ग / भाग 5 / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी
ध
धवल चंदन लेप पर सित हार / कालिदास
धुएँ, पानी, धूप और हवा का / कालिदास
न
नव प्रवालोद्गम कुसुम प्रिय... / कालिदास
निवेदन / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी
निशा मे सित हर्म्य में सुख नींद... / कालिदास
प
पंचम सर्ग / भाग 1 / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी
पंचम सर्ग / भाग 2 / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी
पंचम सर्ग / भाग 3 / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी
पंचम सर्ग / भाग 4 / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी
पंचम सर्ग / भाग 5 / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी
पके प्रचुर सुधान्य से... / कालिदास
पके फलों से दिपते हुए जंगली आमवृक्ष / कालिदास
पहली बार विरह के तीव्र शोक की दु:खिनी / कालिदास
पुष्कर और आवर्तक / कालिदास
प्यास से आकुल फुलाए... / कालिदास
प्रथम सर्ग / भाग 1 / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी
प्रथम सर्ग / भाग 2 / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी
प्रथम सर्ग / भाग 3 / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी
प्रथम सर्ग / भाग 4 / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी
प्रथम सर्ग / भाग 5 / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी
प्रभिन्नाञ्जन दीप्ति से... / कालिदास
प्रिया सुख उच्छ्वास कपिल सुप्त मदन... / कालिदास
प्रिये आया ग्रीष्म खरतर... / कालिदास
प्रिये मधु आया सुकोमल / कालिदास
ब
बाहुयुग्मों पर विलासिनि... / कालिदास
म
मत्त हंस मिथुन विचरते... / कालिदास
मदिर मंथर चल मलय से... / कालिदास
मधु सुरभिमुख कमल सुन्दर / कालिदास
मधुर विकसित पद्म वदनी... / कालिदास
मानसिक सन्ताप के कारण तन-क्षीण बनी / कालिदास
मुँह पर लटक आनेवाले बाल जिसकी / कालिदास
मृदु तुहिन से शीतकृत हैं / कालिदास
मेखला से बंध दुकूल सजे... / कालिदास
मेरे उस घर में एक बावड़ी है जिसमें / कालिदास
मेरे दूर चले आने के कारण अपने साथी से / कालिदास
मैं जानता हूँ कि तुम्हारी उस सखी के मन में / कालिदास
य
यक्षपति का वह अनुचर / कालिदास
यदि वहाँ हिमालय में कुपित होकर वेग से / कालिदास
र
रजनी व्यतीता/ शास्त्री नित्यगोपाल कटारे
रवि प्रभा से लुप्त... / कालिदास
रश्मि जालों को बिछा... / कालिदास
रात्रि में बिछोह सहनेवाली / कालिदास
रिक्त जल अब रजत शंख... / कालिदास
रूखे स्नान के कारण खुरखुरी एक घुँघराली / कालिदास
ल
लगातार रोने से नेत्र सूज गए हैं उसके / कालिदास
लहरों के थपेड़ों से किलकारी भरते हुए / कालिदास
लिप्त कालीयक तनों पर... / कालिदास
लूओं पर चढ़ घुमर घिरती... / कालिदास
लो प्रिये! मुक श्री मनोरम / कालिदास
व
वन में लगी हुई अग्नि को / कालिदास
वह अबला आभूषण त्यागे हुए अपने / कालिदास
वहाँ अलका की वधुएँ षड्ऋतुओं के फूलों से / कालिदास
वहाँ अलका में आधी रात के समय / कालिदास
वहाँ अलका में कामी जन अपने महलों के / कालिदास
वहाँ अलका में कामी प्रियतम अपने / कालिदास
वहाँ अलका में कुबेर के मित्र शिवजी को / कालिदास
वहाँ अलका में पहनने के लिए रंगीन वस्त्र / कालिदास
वहाँ अलका में प्रात: सूर्योदय के समय / कालिदास
वहाँ आकर बैठनेवाले कस्तूरी मृग / कालिदास
व आगे.
वहाँ उज्जयिनी में रात के समय प्रियतम / कालिदास
वहाँ कैलास पर सुर-युवतियाँ / कालिदास
वहाँ चट्टान पर शिवजी के पैरों की छाप / कालिदास
वहाँ पत्थर के बने हुए महलों के उन / कालिदास
वहाँ पर हवाओं के भरने से / कालिदास
वहाँ प्रदोष-नृत्य के समय पैरों की ठुमकन / कालिदास
वहाँ से आगे कनखल में शैलराज / कालिदास
वहाँ से आगे बढ़कर कैलास पर्वत के / कालिदास
वियोगिनी की काम दशा, संकल्प / कालिदास
विरह के दिन गिनने में संलग्न / कालिदास
विरह के पहले दिन जो वेणी चुटीले के बिना / कालिदास
विश्राम कर लेने पर वन-नदियों के किनारों / कालिदास
विश्राम के लिए वहाँ निचले पर्वत पर / कालिदास
व्याप्त प्रचुर सुशालि धान्यों... / कालिदास
श
शीत चंदन सुरभिमय जलसिक्त... / कालिदास
शोभनीय सुडोल स्तन का... / कालिदास
ष
षष्ठ सर्ग / भाग 1 / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी
षष्ठ सर्ग / भाग 2 / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी
षष्ठ सर्ग / भाग 3 / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी
षष्ठ सर्ग / भाग 4 / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी
षष्ठ सर्ग / भाग 5 / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी
स
संस्कृत मातु: आरती / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे
संस्कृत मातु: आरती/ शास्त्री नित्यगोपाल कटारे
सखियों के सामने भी जो बात मुख से / कालिदास
सप्तम सर्ग / भाग 1 / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी
सप्तम सर्ग / भाग 2 / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी
सप्तम सर्ग / भाग 3 / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी
सप्तम सर्ग / भाग 4 / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी
सप्तम सर्ग / भाग 5 / शकुन्तला परिणय / पुरुषोत्तम तिवारी
सरकंडों के वन में जन्म लेनेवाले / कालिदास
सविभ्रम सस्मित नयन बंकिम... / कालिदास
सुधुर-मधुर विचित्र है... / कालिदास
सुभग ताराभरण पहने... / कालिदास
सुरत श्रम से पाण्डु कृश मुख हो चले... / कालिदास
स्वेद से आतुर, चपल कर... / कालिदास
स्त्री के विछोह में / कालिदास
ह
हर सवाल ला जबाब / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे
हिमालय के बाहरी अंचल में / कालिदास
हे कामचारी मेघ / कालिदास
हे गुणवती प्रिये, देवदारु वृक्षों के / कालिदास
हे चंचल कटाक्षोंवाली प्रिया / कालिदास
हे चतुर, ऊपर बताए इन लक्षणों को / कालिदास
हे जलधर, यदि महाकाल के मन्दिर में / कालिदास
हे प्रिय मित्र, क्या तुमने निज बन्धु का यह / कालिदास
हे प्रिया, और भी सुन तू भाँति-भाँति की / कालिदास
हे प्रिया, प्रियंगु लता में तुम्हारे शरीर / कालिदास
हे प्रिया, प्रेम में रूठी हुई तुम गेरू के रंग से / कालिदास
हे प्रिया, स्वप्न दर्शन के बीच जब तुम मुझे / कालिदास
हे मित्र, मेरे प्रिय / कालिदास
हे मेघ, अपने मित्र कैलास पर / कालिदास
हे मेघ, अपने शरीर को पुष्प-वर्षी बना / कालिदास
हे मेघ, गम्भीरा के तट से हटा हुआ / कालिदास
हे मेघ, चिकने घुटे हुए अंजन की शोभा / कालिदास
हे मेघ, जल की बूँदें बरसाते हुए / कालिदास
हे मेघ, तुम निकट आए / कालिदास
हे मेघ, तुम्हारी झड़ी पड़ने से / कालिदास
हे मेघ, पहले तो अपनी यात्रा के लिए / कालिदास
हे मेघ, फुहार, उड़ाती हुई ठंडी वायु से उसे / कालिदास
हे मेघ, मित्रता के कारण, अथवा मैं विरही / कालिदास
हे मेघ, यदि उस समय वह नींद का सुख ले / कालिदास
हे मेघ, वह मेरी पत्नी या तो देवताओं की / कालिदास
हे मेघ, विष्णु के समान श्यामवर्ण तुम / कालिदास
हे मेघ, सपाटे के साथ तुम नीचे उतरो / कालिदास
हे सुहागिनी, मैं तुम्हारे स्वामी का सखा / कालिदास
हे सौम्य, फिर मलिन वस्त्र पहने हुए गोद / कालिदास
होशंगाबाद- वैशिष्ट्यम/ शास्त्री नित्यगोपाल कटारे