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- हर सवाल ला जबाब / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे
- हिमालय के बाहरी अंचल में / कालिदास
- हे कामचारी मेघ / कालिदास
- हे गुणवती प्रिये, देवदारु वृक्षों के / कालिदास
- हे चंचल कटाक्षोंवाली प्रिया / कालिदास
- हे चतुर, ऊपर बताए इन लक्षणों को / कालिदास
- हे जलधर, यदि महाकाल के मन्दिर में / कालिदास
- हे प्रिय मित्र, क्या तुमने निज बन्धु का यह / कालिदास
- हे प्रिया, और भी सुन तू भाँति-भाँति की / कालिदास
- हे प्रिया, प्रियंगु लता में तुम्हारे शरीर / कालिदास
- हे प्रिया, प्रेम में रूठी हुई तुम गेरू के रंग से / कालिदास
- हे प्रिया, स्वप्न दर्शन के बीच जब तुम मुझे / कालिदास
- हे मित्र, मेरे प्रिय / कालिदास
- हे मेघ, अपने मित्र कैलास पर / कालिदास
- हे मेघ, अपने शरीर को पुष्प-वर्षी बना / कालिदास
- हे मेघ, गम्भीरा के तट से हटा हुआ / कालिदास
- हे मेघ, चिकने घुटे हुए अंजन की शोभा / कालिदास
- हे मेघ, जल की बूँदें बरसाते हुए / कालिदास
- हे मेघ, तुम निकट आए / कालिदास
- हे मेघ, तुम्हारी झड़ी पड़ने से / कालिदास
- हे मेघ, पहले तो अपनी यात्रा के लिए / कालिदास
- हे मेघ, फुहार, उड़ाती हुई ठंडी वायु से उसे / कालिदास
- हे मेघ, मित्रता के कारण, अथवा मैं विरही / कालिदास
- हे मेघ, यदि उस समय वह नींद का सुख ले / कालिदास
- हे मेघ, वह मेरी पत्नी या तो देवताओं की / कालिदास
- हे मेघ, विष्णु के समान श्यामवर्ण तुम / कालिदास
- हे मेघ, सपाटे के साथ तुम नीचे उतरो / कालिदास
- हे सुहागिनी, मैं तुम्हारे स्वामी का सखा / कालिदास
- हे सौम्य, फिर मलिन वस्त्र पहने हुए गोद / कालिदास
- होशंगाबाद- वैशिष्ट्यम/ शास्त्री नित्यगोपाल कटारे
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